दूरियाँ सिखाती हैं नज़दीकियों की कींमत
नज़दीकियां तो दूरियाँ लाती हैं जनाब
पूछीये उन मा बाप से जिहोने अपने बच्चे भेजे विदेश पढ़ने को, डांटते थे जिन्हें वो रात प्रभात, बैठे रहतें हैं उनसे बात करने को अब वो आधी आधी रात
दूरियाँ सिखाती हैं नज़दीकियों की कींमत......
पूछीये उस बेटी से जो बहु बंनकर ससुराल चली गयी
माँ के हाथ का खाना जो नकारती थी बार बार
आज तरसती है उसी खाने को दिन रात
और पूछीये उस बेटे से जो नौकरी करने चला गया दूसरे शहर
मा बाप की हर बात पे पाँव पटकता था जो कभी हो कर बोर
झुक कर उनके ही पाँव छूना चाहता है आज वो होकर भाव विभोर
यही नही पूछीये उन स्कूल के बच्चों से, जो जानी दुश्मन थे एक दूजे के, खून पीने को आकुल, आज फेसबुक, इंस्टाग्राम पे ढूँढते हैं उन्ही दोस्तों को होकर व्याकुल। देश हो यां विदेश, ढेरों ग्रुप बने हैं alumni के नाम पे , एक अजीब सा रिश्ता ढूँढ रहे हैं आज वे सब मिलकर के।
पूछीये आज अपने दिलों से, वो जो चले गए हैं बहुत दूर हमसे, जिनके पास बैठने का वक़्त नहीं था हमारे पास कसम से, आज उन्हे याद करतें हैं हम हर दम, दुख हो या दर्द, खुशी हो या गम
दूरियाँ सिखाती हैं नज़दीकियों की कीमत
नज़दीकियां तो दूरियाँ लातीं है जनाब
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